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ीनाटयम  (The Group of Sanskrit)
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                     वीणापािण सं कत सिमित, भोपाल
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                                  क    तित ु
                                सोलह सं कार
     िनदश   क य/लख े क य
            षोडश-सं कारम (सोलह सं कार) नाटक  ीनाटयम  (The Group of Sanskrit
                                                    ्
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     Drama), वीणापािण सं कत सिमित, भोपाल क  सफल   तित ह। ै  16 जलाई 2016 से 16
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     अग त 2016 तक एक मास म  नाटया यास कर यह नाटक मंचन हेत   तत िकया गया ह। ै
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     हष  क  बात ह  ै िक एक वष  क  भीतर स पण  भारत म  इस नाटक क  15   तितयाँ िविवध
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                                                                   ु
     समारोह, नाटयो सव, चिच त रंगमंच पर ह ई ह।    इस नाटक क   याित िविवध समाचार प   म
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      कािशत ह ई ह, ै  साथ ही दरदश न चन ै ल, सं कत वाता वली आिद म  इस का  सारण िकया
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     गया। इस क  लोकि यता को देखते ह ए स  ित सोलह सं कार नाटक का  काशन िकया जा
     रहा ह। ै   य िक,
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           भारतीय सं कित िव  म   े  ह, ै  भारत िव ग  ह  ै इस क े  पीछे हमारे सोलह सं कार
     जस ै ी जीवन िवकास  ि या ह, ै  िजस क े  कारण ही हमारी ग रमा अ ग य ह। ै  ज म से म य पय  त
                                                                     ृ ु
     मन य को सं का रत करने क   ि या हमारे ही देश म  थी, हमारे ऋिष मिनय  ने ऐसी िद य  ि
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     का सा ा कार िकया था जो आज भी पण तः व  ै ािनक एवं  ासंिगक ह। ै
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            गभा धान से लेकर अ  येि  व पनज  म तक षोडश सं कार  क े  च  को नाटय- ्
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     मा यम से िदखाया गया ह, ै  िजसम  सं कार  क  लोकपर पराएँ, भारत क े  िविभ न  े   म
     प र या  लोकरीितयाँ, लोकगीत  क े  साथ-साथ नाटयधम  त व  और आधिनक रंगमंच क
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     तकनीक  का अ त समागम नाटक म  प रलि त ह। ै
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            वत मान समाज म  इन सोलह सं कार  म  से ज म, नामकरण, अ य ाशन, उपनयन
     (जनेऊ) िववाह म य आिद कछ एक सं कार कह  कह   चिलत ह। ै   ायः ये सोहल सं कार िवल   ु
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     होते जा रहे ह।    इस नाटक क े  मा यम से मन य को या समाज को इन सं कार  क  आव यकता
     और व  ै ािनकता को बताया गया ह  ै- जो भारत क  आ मा ह। ै  सं का रत जीवन शल ै ी से ही भारत,
     भारत ह। ै
            अनािद काल से िवकिसत सोलह सं कार  क  सामािजक, सां कितक, आ याि मक
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     और व  ै ािनक पर परा को   तत नाटक से मा यम से जन-सामा य सरल और सहज  प से
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     समझ कर लाभाि वत ह गे।




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