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9. कण वेधः इसका स पादन ज म से तीसरे या पाँचव वष म िकया जाता ह।ै इसम िकसी यो य प ष ारा बालक के
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कान व नाक िछदाये जाते ह। धात क शलाका या बाली उन छेद म पिहनाई जाती ह।ै
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10. उपनयनः यह स कार अ य त मह वपण माना जाता ह।ै इसका स ब ध बालक क िश ा –दी ा से ह।ै बालक
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क ८ से २४ वष तक क आय के म य िकसी भी समय िपता उसे िकसी यो य िश क के पास ले जाता ह।ै इस
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समय बालक को य ोपवीत धारण कराया जाता ह।ै बालक के चा रि क उ थान का दािय व अब से माता-िपता
के थान पर िश क या आचाय पर आ पड़ता ह।ै इस स कार से बालक का दसरा ज म माना जाता ह।ै इसी कारण
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उसे “ि ज” स ा दी जाती ह।ै “ि ज” बनने के बाद ग बालक से गाय ीम का तीन बार उ चारण कराकर
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उपदशे करता ह।ै यह गाय ी म इस कार ह-ै “ॐ भभ वः वः त सिवतव रे य भग देव य धीमिहिधयो
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योन चोदयात” इस स कार के प ात बालक चय त धारण करके वेदा ययन का अिधकारी हो जाता ह।ै
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11. वेदार भः वेद पढ़ने का उप म करने से पव जो धािमक ि या क जाती ह,ै उसे 'वेदार भ-स कार' कहा जाता ह।ै
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इस स कार ारा बालक चार वेद के साङगोपाङग अ ययन के िनिम िनयम धारण करता ह।ै ातः काल
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शभमह त म आचाय बालक के वेदम का अ ययन ार भ कराता ह।ै यह स कार या तो “उपनयन” के साथ ही
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स प न कराया जाता ह,ै अथवा उसके बाद एक वष के भीतर ग -कल म स प न कराया जाता ह।ै
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12. समावत नः यह स कार बालक क िश ा समाि पर स प न होता ह।ै इसम बालक को ग कल (िव ालय) से
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घर जाने क अनमित दी जाती ह ैइस समय आचाय बालक को एक मह वपण उपदशे दते ा ह,ै िजसम स य, धम,
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वा य आिद से माद न करने क बात कही जाती ह।ै इसम आचाय उस नातक को िववाह करके
स तानो पि करने क आ ा भी दते ा ह।ै
13. िववाह (गह था म) –िश ा समा करके गह था म म वेश लेने के िलए यह स कार िकया जाता ह।ै इसम
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यवा नातक का कलशीलवती, गणस प न क या के साथ िववाह िकया जाता ह ैभारतीय (िह द) प ित से वर
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जीवनपय त क या का हाथ थामता ह,ै इसी कारण इस स कार को “पािण हण स कार” कहा जाता ह।ै िववाह
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को िह द स कार म इतना मह व िदया गया ह ै िक िबना प नी के प ष अके ला कोई धािमक कम करने का
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अिधकारी नह माना जाता।
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इस िववाह स कार के बाद मन य गह था म म वेश लेता ह ैऔर िविधवत य आिद करके अपने
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जीवन को उ म बनाता जाता ह।ै इस समय वह अपनी प नी के साथ िविवध सासा रक सख को भोगता ह ैऔर
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शा ानकल धम का आचरण करता ह।ै
14. वान था मः यह स कार प के प हो जाने पर िकया जाता ह।ै इसका समय पचास वष क आय के प ात ्
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होता ह।ै
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