Page 3 - Book.cdr
P. 3

्
                                   ीनाटयम  ्

               (The Group of Sanskrit Drama)

                 वीणापािण स कत सिमित, भोपाल
                                       ृ ं



     आलेख
                                  षोडश स कार
                                          ं

     उप म
            स कार श द का अथ  ह ै– िकसी वि , ि थित,  यि , स था या  यव था आिद क  रचना और  व प म  पहले
                                 ृ
                                             ं
              ं
                                                           ू
     क  अपे ा और अिधक प र कार। दसरे श द  म  दोषय  व त को दोष-रिहत कर दने ा, कमी परी कर दने ा, उसम  अितशय का
                                         ु
                                    ु
                          ू
     आधान कर दने ा ही स कार कम  ह।ै
                  ं
            वैिदक-स कित म   सोलह स कार  का िवधान ह,ै  इसका अिभ ाय यह ह ै िक भारतीय-जीवन-प ित म   सोलह
                             ं
                    ृ ं
     बार मानव को बदलने का अथा त उसके  नव िनमा ण का  यास िकया जाता ह।ै  िजस  कार  वणक  ार अश   वण  को अि न म
                                                                 ु
                        ्
     डालकर उसका स कार करता ह,ै  उसी  कार बालक के  उ प न होते ही उसे स कार  क  भ ी म   डालकर व उसके  दोष  को
                                                  ं
                ं
                                                                    ं
     हटाकर उसम   स ण  के  आधान (समावेश) के  िनिम  जो  य न िकया जाता ह,ै  उसे वैिदक िवचारधारा म   'स कार' श द से
               ु
                                              ु
     अिभिहत िकया गया ह।ै  महिष   चरक क  उि  ह-ै  स कारो िह गणा तराधानम यते । अथा त मानव म   iwoZ से
                                                         ु
                                     ं
                                                                  ्
     िव मान दग ण  को िनकालकर उनके   थान पर स ण  का आधान कर दने े के  नाम 'स कार' ह।
            ु ु
                                                     ं
                                  ु
            इस  कार व ततः 'स कार' मानव जीवन के  नव-िनमा ण क  एक स दर योजना ह।ै  स कार मानव-जीवन के  नव-
                         ं
                                                   ु
                                                            ं
                     ु
     िनमा ण क  योजना ह।ै  व ततः यह एक आ याि मक योजना ह।ै  हम दखे ते ह  िक कोई भी िवकासाकाँ ी दशे  योजनाओ क
                     ु
                                                                          ं
     Ja`[kyk का अवल बन लेकर आगे बढ़ने का  य न करता ह।ै  स च ेमानव का िनमा ण करने के  िलए आ याि मक योजना का
     अवल बन लेना अिनवाय  ह,ै  और उसी योजना का िवधान वैिदक िवचारधारा म   'स कार' नाम से िकया गया ह,ै  तथा वह
                                                      ं
     भारतीय-जीवन प ित का एक अप रहाय  अथवा सवा िधक मह वपण   अग ह।ै  िन कषत  ः वैिदक-स कित क  सबसे बड़ी
                                             ू
                                                                 ृ ं
                                                ं
     योजना और उस योजना का के    िब द स कार   ारा मानव का नव-िनमा ण ह।ै
                             ं ु
      ृ
     प भिम ू
            भगवn~गीता क  “निह कि त  णमिप जात ित  यकमक  त” इस उि  के  अनसार कोई  ाणी  णमा  के
                                                          ु
                                      ु
                                              ृ ्
                              ्
     िलए भी िबना कम   िकये नह  रह सकता। काियक, वािचक अथवा मानिसक  प से उसे  कितज गण  के  परवश होकर
                                                                ु
                                                           ृ
     कोई न कोई कम   करना ही पड़ता ह,ै  और   येक कम   अपना एक अ  , अपनी एक रेखा, अपना एक स कार
                                                                   ं
     मि त क-पटल को छोड़ता चला जाता ह।ै  अिखल िव  का िनय  ण काय कारण भाव के  िनयम से हो रहा ह।ै  कोई भी
     काय  िबना कारण के  नह  हो सकता “कारण िबना काया भावः” और   येक कारण का काय  भी
                               ं
                                        1
   1   2   3   4   5   6   7   8