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15.  स यासा मः यह स कार ७६ वष   क  आय के  प ात िकया जाता ह ै अथवा जब वैरा य हो जावे तभी यह
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            स कार कर िदया जाता ह।ै  इसम   यि  ससार म  क याणाथ  स यास  हण करता ह।ै
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         16.  अ  येि ः यह मन य क  म य के  अ तर उसके  शरीर के  साथ स ब ध रखता ह।ै  'भ मा त शरीरम' इस वेदवा य
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            के  अनसार िचता बनाकर िन  ाण दहे  को उस पर रखते ह,   और अि न   विलत करके  यह स कार कर दते े ह।
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     िवषय िवमश
            आज हम दखे ते ह   िक मानव का वैयाि क जीवन अशा त, सामािजक जीवन िव हपण   और रा  ीय जीवन
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     पतनो मख सा बना ह आ ह ैचार  ओर से इस दशा म  सधार का  वर भी मख रत होता ह,ै  िक त स   िनदान के  अभाव म   यािध
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     का उपचार स भव नह  हो सकता। सच पछा जाय तो इस सम  अशाि त, िव ह एवम अनाचार का कारण ह,ै  मानव क
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     अस कतता अथा त स कार-हीनता। यिद हमारी सा कितक-चते ना को पनः उ  फत  करने क  िदशा म  Bksl  य न िकये जाय
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     और मानव-मानव को स कार स प न बनाने का यथे   यास िकया जाय तो इस स पण   सम या का  वतः ही समाधान हो
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     सकता ह।ै
            धमश  ा  क   ि  से जैिमनी पहले आचाय  ह   िज ह ने 'स कार' श द को dbZ बार  य  िकया। जैिमनी  णीत
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     स   पर भा य िलखने वाले शबर  वामी 'स कार  स भवित यि मन जाते पदाथ  भवित यो यः क यिच थ य' इन
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     श द  म   स कार को व त से यो यता के  fuekZZ.k का साधन मानते ह।   त  वाित क के  रचियता कमा रल भ  ने 'ि  कारा
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     यो यता' कह कर िकसी भी व त या पदाथ  म   'दोषापनयन' (दोष  का िनवारण) तथा 'गणा तरोपजनन' (नवीन गण  से
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     समि वत करना) को स कार  का उ  े य माना।  प  ह ै िक 'दोषापनयन' नकारा मक ह ै और 'गणा तरोपजनन' सकारा मक।
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     खान से  ा  होने वाले र न  एव हीर  पर भी स कार करके  उनके  म य म   वि  होती ह।ै  उ ह    य -का- य  नह  रखा जाता,
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     इससे जौहरी भली भाँित प रिचत ह।   जो बात र न  एव हीर  के  स ब ध म  सही ह ैवही मन य  पर लाग करके   ाचीन मनीिषय
                                                       ु
     ने स कार  के  मा यम से मन य के  तन के  साथ-साथ मन को  स न एव पिव   प  दान करने पर जोर िदया था। मन य को
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                                                                        ु
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     सामािजक जीवन म  उपादये  कराने क  उनक  अिभलाषा रही।
            स कार  क   ि या को दो भाग  म   िवभ  िकया जा सकता ह।ै  एक उसका वै ािनक Lo:i जो म ो चारण,
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     य ान ान आिद कमक  ा ड  के   प म   य  होता ह ैतथा दसरा जो म   क   या या तथा िविधिवधान  के  रह यो ाटन के   प
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     म    तत िकया जाता ह।ै  स कार  म   य  होने वाली कमक  ा ड  ि या का   येक रग अपने आप म  रह यपण  ह।ै  उसम  बड़ा
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     मह व एव मम  िछपा पड़ा ह।ै  सस कत स कित क  आव यकता सव   अनभव क  जा रही ह।ै  इटली के  मड  ले नामक िव ान
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     ने स कार शा  पर आधा रत शा  क  न व डाली, िजसे 'यजेिन स' कहा गया। इ लैड के  िव ान 'सर  ािन स गा टन' ने
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                                                     ं
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     अपनी स पित का बड़ा भाग लदन िव िव ालय को इस  े  म   शोध के  िलए िदया। इस  े  म   शोध कर रह े िव ान  का
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     कहना ह ै िक स तित को सस कारी एव शालीन बनाने म     य  उपदशे  ,  िश ण  का कम, धािमक   स कार  का अिधक
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                                                                 ं
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     योगदान होता ह।ै
             िस  लोकोि  ह-ै  'धन चला गया, कछ नह  गया।  वा  य चला गया, कछ चला गया। च र  चला गया तो
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     समझो सब कछ चला गया।' जीवन क  बह म य िविश ता, स पदा, च र  िनमा ण का आधार स कार ह।ै  मनोिव ानी
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      ािसस म े रल के    थ 'द सी े ट से फ' के  अनसार िजस  कार के  स कार  का सचय हम करते ह,   उसी के  अन प च र
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     बनता-ढलता चला जाता ह।ै
            आज सब ओर भौितकवाद क   विन सनाई द े रही ह।ै  पा ा य  ि कोण को अपनाकर हमने अपने धािमक
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     िवचार  को खो िदया ह।ै  धम,   रीित रवाज,  त,  योहार, स कार, साधना, य  आिद पर हमारी आ था कम हो रही ह।ै
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     हम इसका उपहास करते ह।   यही कारण ह ै िक हम दःखी रहते ह।   हमारे धम   क    येक  ि या म   अव य कछ रह य
                                                                    ु
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     िछपा रहता ह।ै  यह अधिव ास पर आधा रत नह  ह।ै  यह बि  और तक   क  कसौटी पर खरी उतरती ह।ै  हम इसे बा
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      ि  से दखे ते ह,   गहराई तक पह चँ ने का  य न नह  करते, इसिलए नासमझी के  कारण ही इसक  उपे ा करते ह।   अब
     समय आ गया  ह ै िक हम इसको समझ   और पनः इसे जीवन िवकास के  िलए काम म   लाव ।
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